
जगत मोनेरा को आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार दो Divisions ( प्रभागों ) में बाँटा जा सकता है –
प्रथम प्रभाग ( Division 1 ) -यूबैक्टीरिया ( Eubacteria ) -उदाहरण – जीवाणु (Bacteria ), सायनोबैक्टेरिया (Cyanobacteria ) , माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma ) ।
द्वितीय प्रभाग ( Division 2 ) – आरकीबैक्टीरिया ( Archebacteria ) |
यूबैक्टीरिया अंतर्गत मुख्य रूप से जीवाणु आते हैं ।
जीवाणु —
सभी जीवाणु मोनेरा जगत के अंतर्गत आते हैं । सबसे पहले सन 1683 में हॉलैंड के निवासी एंटोनी वॉन ल्यूवेन्हॉक ने अपने बनाए हुए सूक्ष्मदर्शी द्वारा जल , लार एवं दांत से खुरचे मैल को देखा जिसमें उन्हें अनेक सूक्ष्म जीव (Little Animalcule ) दिखाई दिए । यह जीवाणु (Bacteria ) थे । लीनियस ( 1758 ) ने इन्हें वंश vermes में रखा । एरनवर्ग ( 1829 ) ने इन्हें जीवाणु नाम दिया । लुई पाश्चर ( 1822 – 1895 )ने किण्वन पर कार्य किया और बताया कि यह जीवाणु द्वारा होता है । इन्होंने यह भी बताया कि पदार्थों का सड़ना तथा विभिन्न रोगों का कारण ये सूक्ष्म जीव हैं ।लुई पाश्चर नें अपने कार्य के आधार पर ” रोगों की उत्पत्ति रोगाणुओं द्वारा ( Germ Theory of Disease ) ” सिद्धान्त को प्रतिपादित किया । रॉबर्ट कोच ने यह सिद्ध किया कि एंथ्रेक्स , क्षय रोग ( टीवी ) हैजा रोग का कारण यह जीवाणु हैं । लुई पाश्चर को सूक्ष्म जैविकी का पिता ( Father of Microbiology ) , ल्यूवेन्हॉक को जीवाणु विज्ञान का पिता ( Father of Bacteriology ), तथा रॉबर्ट कोच को आधुनिक जीवाणु विज्ञान का जनक ( Father of Modern Bacteriology ) कहा जाता है । सन 1885 से 1914 के बीच के समय को जीवाणुओं का स्वर्णिम काल कहा जाता है क्योंकि सबसे ज्यादा खोज इसी काल में हुई ।