
. पुष्पक्रम के प्रकार ( Types Of Inflorescence ) –
पुष्पक्रम चार प्रकार के होते हैं –
1 – असीमाक्षी पुष्पक्रम (Racemose inflorescence)
2- ससीमाक्षी पुष्पक्रम (Cymose inflorescence)
3- विशिष्ट पुष्पक्रम ( special inflorescence)
4- संयुक्त पुष्पक्रम ( Compound inflorescence )
(1) -असीमाक्षी पुष्पक्रम(Racemose inflorescence) – इस पुष्प क्रम मे पुष्पावलि वृंंत की लंबाई मेंं वृद्धि अनिश्चित काल तक होती रहती है जिसके कारण नीचेेेेे और बाहर की ओर के पुष्प बड़े और पुरानेेे होते हैं तथा अंदर की ओर के पुष्प छोटे और नए होते हैं अर्थात पुष्प पुष्पावलि वृंंत पर अग्राभिसारी क्रम में निकलते हैं ।

असीमाक्षी पुष्पक्रम के प्रकार –
असीमाक्षी पुष्प क्रम के प्रकार – ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –
A – असीमाक्ष (receme ) – मुख्य अक्ष लंबा तथा बड़ा होता है और पत्तियों अथवा सहपत्रों ( Bracts ) के कक्षों से पुष्प निकलते हैं , example – मूली , सरसों, Delphinium आदि ।
B – स्पाइक ( Spike ) – इसमें वृद्धिशील अक्ष पर अवृंत ( sessile ) पुष्प निकलते हैं Example– चौलाई , लटजीरा आदि
C – स्पाइकलेट ( spikelet ) – ये वास्तव में छोटे छोटे स्पाइक होते हैं जिनमें कभी कभी कई तथा कभी कभी केवल एक ही पुष्प होता है । ये आधार की ओर glumes से घिरे रहते हैं । Example – जौ , गेहूं , जई आदि ।
D – मंजरी ( catkin ) – इसमें अक्ष लंबा तथा pendulous होता है तथा कमजोर पुष्प अक्ष पर एकलिंगी और पंखुड़ी विहीन पुष्प लगे रहते हैं |
E – स्थूलमंजरी ( Spadix ) – यह एक प्रकार का एकलिंगी पुष्पों वाला स्पाइक है जिसमें गूदेदार वृंत दो या दो से अधिक बड़े रंगीन निपत्रों ( spathe ) से ढका रहता है Example – केला , ताड़ आदि । पुष्पावलि वृंत का ऊपरी बंध्य भाग appendix कहलाता है नीचे के भाग में ऊपर की ओर नर पुष्प , मध्य में बंध्य पुष्प तथा नीचे की ओर मादा पुष्प होते हैं । सभी पुष्प अवृंती होते हैं । Example – अरबी आदि ।

F- समशिख ( Corymb ) – इसमें सभी पुष्प एक ही ऊंचाई पर मिलते हैं इसलिए नीचे वाले पुष्पों के पुष्पवृंत लंबे होते हैं तथा ऊपर वाले पुष्पों के पुष्पवृंत छोटे होते हैं ; उदाहरण – कैंडी टफ्ट (Iberis )
G – छत्रक ( Umbel ) – इसमें मुख्य अक्ष संघनित होता है तथा सभी पुष्पों के वृंत एक ही स्थान से निकलते हुए प्रतीत होते हैं। जैसे – धनिया ( Coriandrum ) ।
H- मुंडक ( Capitulum ) – इसमें पुष्पक्रम की अक्ष अत्यंत संघनित हो जाती है तथा अवृंत पुष्प ( sessile flower ) सहपत्र चक्र ( involucre of bract ) के द्वारा गिरे रहते हैं । यदि मुंडक के सभी पुष्प समान होते हैं तो वह सम पुष्पी अथवा homogenous. कहलाता है और यदि मुंडक में दो प्रकार के पुष्प बिंब पुष्पक ( disc florets ) तथा रष्मि पुष्पक ( ray florets ) पाए जाते हैं तो यह विषम पुष्पी ( heterogenous ) कहलाता है । Example – – सूर्यमुखी (helianthus ) मैं दोनों प्रकार के पुष्प पाए जाते हैं Launea में सम पुष्पी मुंडक पाया जाता है । जब पुष्प वृंत के नीचे एक छोटी पत्तीनुमा संरचना मिलती है तब वह सहपत्र (bract) कहलाती है पुष्पवृंतो के नीचे यदि सहपत्रों का चक्र मिलता है तो उसे सह पत्रिकाचक्र ( involucel ) कहते हैं । जब यह चक्र पुष्पावलि वृंत के चारों ओर मिलता है तब इसे सहपत्र चक्र ( involucre ) कहते हैं ।
2-ससीमाक्षी पुष्पक्रम (Cymose Inflorescence)– इस प्रकार के पुष्प क्रम का मुख्य अक्ष पुष्प में समाप्त होता है। इसमें पुराने पुष्प ऊपर की ओर तथा नई कलियां नीचे की तरफ लगी होती है इस प्रकार के पुष्प क्रम को बेसिपेटल सक्सेशन ( Basipetal succession ) कहते हैं |
ससीमाक्षी पुष्पक्रम (Cymose Inflorescence) के प्रकार – ये निम्न प्रकार के होते हैं –

A- एकल (Solitrary ) — इसमें केवल एक पुष्प लगता है । यह पुष्प अग्रस्थ (apical or terminal) अथवा कक्षस्थ (axilary) हो सकता है ।
B- एकल ससीमाक्ष ( Unichasial cyme ) — इसमें प्रथम अंतस्थ ( terminal ) के नीचे केवल एक पुष्प बनता है यह दो प्रकार का होता है —
( क) – कुण्डलिनी रूप ( Helicoid unichasium ) – जब एकल शाखी क्रम में पुष्प एक ही तरफ बनते हैं जैसे या तो दाहिनी तरफ या फिर बाईं तरफ , कुण्डलिनी रूप एकल शाखी पुष्पक्रम कहलाता है ।
(ख) – वृश्चिकी एकलशाखी ( Scorpoid unichasium ) – जब एकल शाखी क्रम में पुष्प एकान्तर दिशाओं में लगते हैं ।
C- द्विशाखी ससीमाक्ष ( Dichasial cyme ) – जब पुष्प के नीचे दो पार्श्ववीय ( lateral) पुष्प उत्पन्न होते हैं तो द्विशाखीससीमाक्ष होता है।
D- सिनसिनस ससीमाक्ष ( Cincinous cyme ) – इस प्रकार के पुष्प क्रम में पहले द्विशाखी ससीमाक्ष मिलता है जो उत्तरोत्तर क्रम में एकलशाखी हो जाता है ।
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