शैवाल क्या हैं

What Are Algea – शैवाल (Algea) पर्णहरिमयुक्त (chlorophyllus) , संवहन ऊतकरहित (non-vascular) थैलोफाइट्स (thallophytes) हैं , जिनका शरीर में वास्तविक जड़ें , तना तथा पत्तियाँ नहीं होती | इनमें जननांग प्रायः एककोशिकीय होते हैं परन्तु कुछ भूरे रंग (brown) के शैवालों में ये बहुकोशिकीय होते हैं | ऐसे बहुकोशिकीय जननांगों में सभी कोशिकाएं जनन का कार्य करती हैं | जननांगों में बंध्य कोशिकाओं की बनी चोलक (jacket of sterile cell) नहीं होती |
शैवालों में लिंगी प्रजनन के बाद भ्रूण (embryo) नहीं बनता | वनस्पति विज्ञान की वह शाखा जिसमें शैवाल का अध्ययन करते हैं , शैवाल विज्ञान (Algology अथवा Phycology , phycos = sea weed , logos = discourse ) कहलाती है | एफ0 ई0 फ्रिच (F. E. Fritch) को “शैवाल विज्ञान का पिता” कहा जाता है | भारतीय शैवाल विज्ञान (Algology या Phycology) के जनक प्रोफेसर एम. ओ. पी. अयंगर (Mundayam Osuri Parthasarathy Iyengar) को माना जाता है।
शैवालों के सामान्य लक्षण (General Characters Of Algea)
शैवालों के लक्षण निम्नलिखित हैं –
1 – ये जल अथवा नमीदार स्थानों में पाए जाते हैं |
2 – इनका शरीर थैलस (thallus) के आकार का होता है |
3 – कोशिका भित्ति मुख्य रूप से सेल्यूलोस की बानी होती है |
4 – कोशिकाओं में पर्णहरिम (cholorophyll) उपस्थित होता है |
5 – पर्णहरिम की उपस्थिति के कारण ये स्वपोषी (autotroph) होते हैं , अर्थात ये प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) द्वारा अपना भोजन बनाते हैं |
6 – संचित भोज्य पदार्थ मुख्यतः स्टार्च के रूप में परन्तु कभी – कभी यह वसा या तेल के रूप में भी होता है |
7 – जनन तीनों प्रकार का – कायिक , अलैंगिक तथा लैंगिक (vegetative, asexual and sexual) प्रकार का होता है |
8 – अलैंगिक जनन विभिन्न प्रकार के अचल (non-motile) तथा चल (motile) बीजाणुओं द्वारा होता है तथा बीजाणुधानियाँ एककोशिकीय होती हैं |
9 – जननांग सामान्यतः एककोशिकीय (unicellular) होते हैं , यदि बहुकोशिकीय (multicellular) हो तो आवरणविहीन (non-jacketed) होते हैं |
वासस्थान (Habitat)
शैवाल ताजे जल , गर्म जल के झरने , समुद्र , भीगी मिटटी , पेड़ों के तनों या चट्टानों पर पाए जाते हैं | कुछ शैवाल कीचड़ में रहते हैं जैसे – कारा (Chara) | कुछ शैवाल झील व तालाबों के किनारे पाए जाते हैं , जैसे – रिवुलेरिया (Rivulariya) कुछ शैवाल पानी पर तैरते हैं , जैसे – वॉलवॉक्स (Volvox) कुछ शैवाल अधिपादप (epiphytes) के रूप में दुसरे पौधों पर उगते हैं , जैसे – ऊडोगोनियम (Oedogonium) | प्रोटोडर्मा (Protoderma) कछुवों की पीठ पर उगता है | क्लेडोफोरा (Cladophora) घोंघे (snail) के ऊपर उगता है | ज़ूक्लोरेला (Zoochlorella) नामक शैवाल निम्नवर्गीय जन्तु हाइड्रा (Hydra) के शरीर के अन्दर पाया जाता है | शैवाल कभी कभी परजीवी भी होते हैं ,जैसे – सीफेल्यूरोस (Cephaleuros) चाय , कॉफी आदि की पत्तियों पर परजीवी होता है | कुछ शैवाल समुद्र में अधिकता से पाए जाते हैं , जैसे – सारगासम (Saargasam) , ग्रेसिलेरिया (Gracillaria) , जेलिडियम (Gellidium) आदि |
कुछ शैवाल बर्फ में भी पाए जाते हैं और विभिन्न प्रकार के रंग प्रदान करते हैं , उदाहरण – हीमेटोकॉकस निवेलिस (Heamatococcus nivalis) के कारण आर्कटिक पर जमी बर्फ लाल दिखाई देती है | कुछ यूरोपीय पर्वत पर जमी बर्फ रेफिडोनिमा (Raphidonema) , एवं क्लैमिडोमोनास (Chlamydomonas) शैवाल की उपस्थिति के कारण हरे रंग की दिखाई देती है | प्रोटोडर्मा (Protoderma) एवं स्कोटिला (Scotiella) बर्फ को हरा पीला बनाते हैं |
नोस्टॉक (Nostoc) नामक शैवाल एन्थोसीरोस(Anthoceros) नामक ब्रायोफाइटा के अंदर तथा एनाबीना (Anabaena) नामक शैवाल ऐजोला (Azolla) नामक टेरिडोफायटा पौधे के अंदर पाये जाते हैं । ट्राइकोडेस्मियम एरिथ्रियम (Trichodesmium erythrium) नामक नीले हरे शैवाल समुद्र के जल के ऊपर तैरता रहता है जो उसे लाल रंग प्रदान करता है जिसके कारण इस सागर का नाम लाल सागर ( Red sea ) है ।