

History of VIRUS : प्राचीनकाल से प्लेग (plague) , गिल्टी रोग (anthrax) ,चेचक (smallpox) , पीतज्वर (yellow fever) न्यूमोनिया (pneumonia) , इन्फ्लुएंजा (influenza) आदि कई घातक संक्रामक रोग मानव आबादियों में महामारी के रूप में में फैलकर व्यापक तबाही करते रहे हैं | 19 वीं सदी का अंत तक मनुष्य इस बात से अनभिज्ञ रहा है की ये रोग और महामारियां किस कारण से होती रही हैं |
18 वीं एवं 19 वीं सदियों में कई प्रकार के जीवाणुओं की खोज हुई और यह स्पस्ट हो गया की जीवाणु सबसे सरल एक कोशिकीय जीव (unicellular organism) हैं | 20 वीं सदी के प्रारम्भ तक यह पता लग चुका था की मनुष्य एवं पशुओं में होने वाले अधिकतर रोग जीवाणुओं से ही होते हैं | परन्तु चेचक (smallpox) , इन्फ्लुएंजा (influenza) , पीतज्वर (yellow fever) , खसरा (measles) , पोलियो (polymilitis) , गलसुआ (mumps) , डेंगू (dengue) आदि कई प्रकर के रोगों का सम्बन्ध जीवणुओं से स्थापित नहीं हुआ तब वैज्ञानिकों को यह आभास हुआ की यह रोग इनसे भी अधिक सूक्षजीवों के संक्रमण से होता है जो अभी तक अज्ञात हैं ।
18 वीं सदी के अंत में अंग्रेज डॉक्टर , एडवर्ड जेनर ने गोचेचक (cowpox) के एक रोगी के फफोलों से एक तरल निकला और 23 रोगियों में इंजेक्ट किया और उनका जीवन बचाया | इसके काफी बाद सन् 1885 में लुई पाश्चर को आभास हुआ की कुत्तों में होने वाला घातक रेबीज रोग (rabies or hydrophobia) जीवाणुओं से अधिक सूक्ष्म रोगाणुओं के संक्रमण से होता हैं , इस आधार पर उन्होंने रेबीज रोग (rabies) के उपचार के लिए एक टीका (vaccine) तैयार किया और इसे पागल कुत्ते से काटे 9 वर्षीय बालक में लगाया जिससे उसकी जान बच गयी |
कुछ ही वर्षों बाद , सन् 1892 में रूसी वैज्ञानिक दमित्री इवानोवस्की ने तम्बाकू की पत्तियों में मोज़ेक रोग के कारण की खोज करने का प्रयास किया | इस रोग में पत्तियां चितकबरी होकर मुरझा जाती हैं | उन्होंने रोग से ग्रस्त पत्तियों के रस को पोर्सलेन जीवाणु फ़िल्टर से छान कर इस रस से जीवाणुओं को हटा दिया | जब उन्होंने इस रस को स्वस्थ पत्तियों पर छिड़का तो यह पाया की स्वस्थ पत्तियां भी रोग ग्रस्त हो गयीं | इस प्रकार से यह प्रमाणित हो गया की जीवाणु से भी छोटे रोगोत्पादक (pathogens) सूक्ष्मजीव हैं जिन्होंने इन्हें रोगग्रस्त किया | जिन्हें बाद में इन्हें विषाणु (Virus) अर्थात वायरस नाम दिया गया और इवानोवस्की को ही वायरस की खोज का श्रेय दिया गया |
हॉलैंड के वैज्ञानिक बीजेरिन्क ने सन् 1898 में इवानोवस्की के खोज की पुष्टि की | लुई पाश्चर एवं बीजेरिन्क ने इन तरलों को ” जीवित तरल संक्रामक (Contagium Vivum Fluidum) “ का नाम दिया ।