PROTOPLASM :
कोशिका की आकृति एवं आकार (Shape And Size Of Cell ) :
जीवद्रव्य (protoplasm) भौतिक कारणों से गोलाकार होता है | वृद्धि और विभेदन के साथ कोशिकाओं की आकृति विभिन्न प्रकार की हो जाती है , यद्यपि मुख्यतः दो प्रकार की – बहुफलक (polyhedral – जिसमें व्यास एकसमान होता है ) और लम्बी (elongated) होती हैं , परन्तु इन दो रूपों के बीच कई रूप बन जाते हैं | बहुफलक रूप कोशिकाओं के दबाव से बनते हैं |
अधिकतर कोशिकाओं की माप 1 – 2 μm से 100 μm के व्यास की होती हैं | माइकोप्लाज्मा गैलिसेप्टिकम (Mycoplasma gallisepticum = PPLO = Pleuro Pneumonia Like Organism) अब तक देखी गयी सबसे छोटी कोशिका है (1.0 μm , एक जीवाणु का 1/10 भाग ) | तंत्रिका कोशिका (nerve cell) की लम्बाई 90 cm तक होती है | शुतुरमुर्ग (Ostrich) का अंडा 170 mm लम्बा होता है | ऐसिटाबुलेरिया (Acetabularia) नामक एक कोशिकीय शैवाल जिसकी लम्बाई 10 cm तक होती है तथा दुसरे एक कोशिकीय शैवाल कौलर्पा (Caulerpa) की कुछ जातियों की लम्बाई 1 मीटर तक होती है |
कोशिका के भाग (Parts Of Cell)
कोशिका के भाग (Parts Of Cell) : विकसित कोशिका के तीन महत्वपूर्ण भाग होते हैं –
1 – जीवद्रव्य
2 – रिक्तिका
3 – कोशिका भित्ति
1 – जीवद्रव्य (Protoplasm) – जीवद्रव्य या प्रोटोप्लाज्म की खोज डुजार्डिन (Dujardin) नामक वैज्ञानिक ने सन् 1835 में की और इसे सार्कोड (Sarcode) नाम दिया | बाद में परकिंजे (Purkinje) ने 1837 में नामक वैज्ञानिक ने इसे सर्व प्रथम जीवद्रव्य (Protoplasm) नाम दिया | हक्सले (Huxley) ने जीवद्रव्य को जीवन का भौतिक आधार कहा | ह्यूगो वॉन मॉल (Hugo Von Mohl 1944) ने पादप कोशिका में जीवद्रव्य का वर्णन किया और उसका महत्त्व बताया |
जीवद्रव्य के भौतिक गुण (Physical Properties Of Protoplasm)
सूक्ष्मदर्शी से देखने पर जीवद्रव्य स्वच्छ , रंगहीन , चिपचिपा ( jelly like gelatinous substances ) दिखाई देता है | यह विभिन्न पदार्थों के अनेक अतिसूक्ष्म कणों का जलीय विलयन है इस कारण यह चिपचिपा (viscous) , लचीला (elastic) और कणिकामय (granular) दिखाई देता है | इसे एक धागे के समान खींचा जा सकता है जो छोड़ने पर अपने स्थान पर वापस आ जाता है | इसमें एक या भिन्न भिन्न आकार की अनेक रिक्तिकाएँ (Vacuoles) होने के कारण यह फेनयुक्त दिखाई देता | यह वाह्य उत्तेजनाओं (outer stumuli) जैसे गर्मी , बिजली के आघात तथा रासायनिक पदार्थो के प्रति अनुक्रिया (response) करता है | उत्तेजनशीलता जीवद्रव्य का जन्मजात लक्षण है |
गति (Movement) – जीवद्रव्य में निम्नलिखित गतियां संपन्न होती हैं –
1 – जीवद्रव्य भ्रमण (Cyclosis) – यह दो प्रकार का होता है | यदि यह कोशिका के अंदर रिक्तिका के चारों ओर केवल एक ही दिशा में घूमता है तो इसे घूर्णन (Rotation) कहते हैं | उदाहरण – वैलिसनेरिया (Vallisnaria) , या हाइड्रिला (Hydrilla) की पत्ती में | दुसरे यदि एक ही कोशिका में एक ही दिशाओं में घूमता है तो इसे परिसंचरण (Circulation) कहते हैं | जैसे – ट्रेडेस्कैन्शिया (Tradescantia) के पुंकेसरीय रोम में |
2 – पक्ष्माभिकीय गति (Ciliary Movement) – इसमें पक्ष्माभिका के द्वारा गति होती है , उदाहरण – क्लैमाइडोमोनस (Chlamydomonas) |
3 – अमीबीय गति (Amoeboid Movement) – जब जीवद्रव्य कूटपाद (pseudopodia) के द्वारा गति करता है | उदाहरण – अपवंक कवक (Slime Molds) |
जीवद्रव्य एक कोलाइडी तंत्र के रूप में ( Protoplasm As A Colloidal System ) –
जीवद्रव्य एक कोलाइडी तंत्र को प्रदर्शित करता है | वास्तव में यह जल में परिक्षिप्त प्रोटीन , लिपिड एवं अन्य दीर्घ अणुओं का कोलाइडी घोल है | कोलाइडी जीवद्रव्य के प्रोटीन अणु कोशिकाओं के विभिन्न अंगकों का निर्माण करते हैं हुए एन्ज़ाइम के रूप में विभिन्न जैविक क्रियाओं का नियमन करते हैं | जीवद्रव्य के अनेक भौतिक गुण कोलाइडी स्वाभाव के अनुकूल होते हैं और इन्हीं गुणों के कारण यह विभिन्न जैविक क्रियाओं को करने में दक्ष होता है |
जीवद्रव्य के कोलाइडी गुण (Colloidal Properties Of Protoplasm)-
1 – सॉल व जेल दशा (Sol And Gel State) – कोलाइड दो अवस्थाओं में होते हैं : सॉल (sol) व जेल (Gel) | सॉल कोलाइड की तरल अवस्थाओं को तथा जेल ठोस या अर्धठोस दशा को प्रदर्शित करता है | उदाहरण – जिलेटिन का गर्म पानी में कोलाइडी घोल सॉल है , किन्तु ठंडा होने पर यह जेल अवस्था में बदल जाता है |
2 – ब्राउनी गति (Brownian Movement) – जीवद्रव्य में विलयन के अणु सदैव अनियमित गति करते हैं यह गति विलायक (जल) के अणुओं के कोलाइडी कणों के टकराने के कारण होती है | इसका पता सर्वप्रथम रॉबर्ट ब्राउन (Robert Brown) ने 1827 में लगाया था | उसी के नाम पर इन गतियों को ब्राउनियन गति कहते हैं | ब्राउनियन गति सभी कोलाइडी विलयनों का विशिष्ट गुण है |